वो जो आइना था... हॉल के बीचोबीच
हाँ वोही जो गूंगी शकले बनाता था.
चाँद को छुपा लेता था अपने सीने में
और रोशन करता था मेरी नज्मों को
चोरी के नूर से...
तेरी एक नजर क्या पडी.... तस्वीर बन गया
समेत रक्खे थे ... उसने कई अंदाज़ तेरे
अँधेरे में मेरी रूह टटोलता था
झूटी तारीफें करता था... मेरी
दीवार से गिर के टूट गया है वो
और सन्नाटे में ठहर गयी है एक चीख
और जो चंद परछाइयाँ समेत रक्खी थी
वो दीवोरों की गहराइयों में खो गए हैं